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चेहरा चमकाने की कवायद में जुटे लोग, बजा रहे अपनी डफली अपना राग।

NEWS DESK,: बूढ़ी गंडक नदी के किनारे बसे रोसड़ा की मांगों और उपेक्षा का अन्योन्याश्रय संबंध है। एक तरफ रोसड़ा के लोगों की मांगे हैं तो दूसरी तरफ सरकार की तरफ से उनकी उपेक्षा की जा रही है। जिला बनाए जाने की मांग को तो सरकार ने लॉक करके रखा है। जाम की समस्या से निजात दिलाने तथा एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव जैसी मांगे भी अनसुनी की जा रही है। रोसड़ा क्षेत्र की इन सभी मांगों को लेकर मई 2025 में सिविल सोसाइटी का गठन किया गया। इसमें कई कमेटी बनाई गई। बड़े-बड़े नामों को इसमें शामिल किया गया। दो महीने बाद भी सिविल सोसाइटी की उपलब्धि ढांक के तीन पात वाली रही। सिविल सोसाइटी से जुड़े लोग चेहरा चमकाने की कवायद में जुट गए।।इन्होंने अपनी डफली अपना राग अलापना शुरू कर दिया। सिविल सोसाइटी की पहली बैठक में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया। इसके संयोजक शहर के एक बिजनेस मेन को बनाया गया। इसी बैठक में सिविल सोसाइटी के द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों को चलाने का निर्णय लिया गया जो पूरी तरह ठप रहा। सी पी आई के आह्वान पर रुसेरा घाट रेलवे स्टेशन पर धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया, जिसमें सिविल सोसाइटी से जुड़े लोग भी शामिल हुए। सिविल सोसाइटी ने अपना कोई कार्यक्रम नहीं चलाया वही चेहरा चमकाने की कवायद में सिविल सोसाइटी पीछे छूट गया। एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता व्यक्तिगत रूप से मंत्री अशोक चौधरी से मिलकर रोसरा की समस्याओं से संबंधित ज्ञापन दिए। चैंबर ऑफ़ कॉमर्स से जुड़े पदधारक समस्तीपुर के डीआरएम से मिलकर एक्सप्रेस ट्रेन के ठहराव को लेकर ज्ञापन दिए वही रोसरा में जाम की समस्या को लेकर मंत्री संजय झा को ज्ञापन देते नजर आए। इस दौरान एक जुटता का अभाव साफ दिखाई दिया। 2 महीने बाद 29 जून को शहर के टावर चौक पर एकदिवसीय धरना सिविल सोसाइटी के द्वारा आयोजित किया गया। इस धरने को भी कांग्रेस से विधानसभा चुनाव में टिकट की दावेदारी पेश करने की जुगत में लगे एक नेता के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। आखिर सिविल सोसाइटी अपने उद्देश्य को क्यों नहीं पा रही है। इन नेताओं में एक जुटता का अभाव है। इनमें बिखराव साफ देखा जा रहा है। यही कारण है कि रोसरा की मांगों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।

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