लाचार व्यवस्था का शिकार बनती बेटियां…
NEWS DESK: पुरुषवादी मानसिकता वाले समाज में शिक्षण संस्थानों में यौन शोषण की घटनाएं अक्सर सुनने को मिलती है। हाल ही में हुई उड़ीसा के बालासोर की घटना दिल को झकझोर देने वाली है। यौन हिंसा के खिलाफ इंसाफ की मांग करने वाली छात्रा को अपनी जान देने की नौबत क्यों आन पड़ी। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर संवेदनहीनता क्यों अपनाई जाती है। शिक्षण संस्थानों में छात्राओं का शोषण करने वालों पर कार्रवाई करने में इतनी देरी क्यों हो जाती है। इस लाचार सरकारी व्यवस्था की शिकार बेटियां बन रही है। इस पर रोक लगाने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है! उड़ीसा के बालासोर में फकीर महिला कॉलेज की b.Ed कोर्स कर रही 20 वर्षीय छात्रा ने 30 जून को अंग्रेजी विभाग अध्यक्ष समीर कुमार साहू पर यौन हिंसा का आरोप लगाई।कॉलेज में समीर साहू के खिलाफ आंदोलन होने लगा छात्रा ने सोशल मीडिया पर भी अपने हाल को बयां किया, उसने कार्रवाई की मांग की। कॉलेज के प्रिंसिपल दिलीप घोष ने 2 जुलाई को इंटरनल कंप्लेंट कमेटी का गठन किया। कमेटी ने 7 दिनों में अपनी रिपोर्ट दे दिया। प्रिंसिपल दिलीप घोष ने आरोपी प्रोफेसर पर कोई कार्रवाई नहीं की। इस दौरान छात्रा के परिवार वालों पर मामला वापस लेने के लिए दबाव बनाए जाने लगा। 12 जुलाई को पीड़ित छात्रा प्रिंसिपल से कार्रवाई के बारे में पूछताछ करने गई। उसने बाहर निकल कर निराशा में जान देने की नीयत से अपने आप को आग लगा ली। कॉलेज कैंपस में दिल दहलाने वाली घटना से सभी सकते में आ गए। गंभीर रूप से जल चुकी छात्रा को भुवनेश्वर एम्स में भर्ती कराया गया। दो दिन बाद छात्रा इंसाफ की जंग लड़ते- लड़ते जिंदगी की जंग हार गई। इस बीच 12 जुलाई को आरोपी प्रोफेसर समीर कुमार साहू को गिरफ्तार कर दिया गया। फकीर महिला कॉलेज के प्रिंसिपल दिलीप घोष सस्पेंड कर दिए गए तथा उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। पीड़िता के पिता कॉलेज के इंटरनल कंप्लेंट कमेटी के सदस्यों पर भी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। वही यूजीसी ने चार सदस्य फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया है। छात्रा की मौत पर राजनीतिक बयानबाजी भी हो रही है ।विपक्ष की तरफ से सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। अगर समय रहते आरोपी प्रोफेसर पर कार्रवाई हो जाती तो एक छात्रा को अपनी जान देने की नौबत नहीं आती।समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं होती है।इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।